केजीएमयू ट्रामा सेंटर में फैला दलालों का जाल


गरीब मरीजों के साथ हो रही खुली लूट

लखनऊ के मशहूर केजीएमयू ट्रामा सेंटर में मरीजों की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए दलालों का काला कारोबार फल-फूल रहा है,

चाय के ठेले और ठेलों के पास जमे ये दलाल सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आए गरीब मरीजों को निजी अस्पतालों की ओर खींच रहे हैं,

इनका मकड़जाल इतना मजबूत है कि पुलिस की कार्रवाई भी इन्हें रोकने में नाकाम साबित हो रही है।

गरीब मरीजों पर दलालों का खंजर

दूर-दराज से इलाज की आस लेकर पहुंचे गरीब मरीज इन दलालों के जाल में फंसकर अपना सब कुछ गंवा रहे,

जमीन बेचकर, कर्ज लेकर इलाज के लिए पैसा जुटाने वाले इन मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा,

निजी अस्पतालों के इशारे पर काम करने वाले ये दलाल मरीजों को बहलाकर वहां ले जाते हैं,

जहां भारी-भरकम बिल के अलावा कुछ नहीं मिलता।

पुलिस और प्रशासन की नाकामी

हालांकि पुलिस ने कई बार इन दलालों पर कार्रवाई की है, लेकिन ये अपनी चालाकी और रसूख के दम पर फिर सक्रिय हो जाते हैं।

बताया जा रहा है कि दो बार ट्रामा चौकी इंचार्ज पर कार्रवाई करते हुए उनका तबादला तक करवा दिया गया।

सूत्रों के अनुसार, इन दलालों को बड़े रसूखदार लोगों का समर्थन प्राप्त है, जिससे पुलिस भी मजबूर नजर आती है।

डॉक्टरों की भी मिलीभगत का आरोप

सूत्रों के मुताबिक, ट्रामा सेंटर के अंदर के कुछ डॉक्टर भी इस दलाली में हैं शामिल

दलालों के साथ मिलीभगत कर मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर करने का गोरखधंधा दिन-रात जारी,

यहां तक कि 108 एंबुलेंस के ड्राइवरों और कर्मियों तक की सेटिंग कर मरीजों को सीधे निजी अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा,

दलालों की महंगी गाड़ियां और रातभर की निगरानी
दलाल अपनी महंगी गाड़ियों में रातभर हताश एवं परेशान मरीजों के तीमारदारों को अपना शिकार बनाने की तलाश में हैं घूमते,

ट्रामा सेंटर के अंदर और बाहर हर कोने में इनका नेटवर्क

ये लोग न सिर्फ मरीजों को बहलाने में माहिर हैं, बल्कि किसी भी सख्ती का तोड़ निकालने में हैं माहिर,

आखिर कब थमेगा ये गोरखधंधा?

सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन दलालों के जाल को तोड़ पाएगा?

क्या गरीब मरीजों को उनके हक का इलाज मिल पाएगा, या ये काला धंधा यूं ही चलता रहेगा?

लखनऊ के केजीएमयू ट्रामा सेंटर में चल रहे इस गोरखधंधे पर रोक लगाने की जिम्मेदारी अब प्रशासन और पुलिस पर है,

गरीब मरीजों के दर्द और उनकी उम्मीदों की इस लड़ाई का समाधान कब होगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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