हमारा इतिहास -जो भुला दिया गया —

संवत 1368 (ई.सन 1311) मंगलवार बैसाख सुदी 5. को विका दहिया जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक स्वरूप मिली धन की गठरी लेकर बड़ी ख़ुशी ख़ुशी लेकर घर लौट रहा था|
शायद उसके हाथ में इतना धन पहली बार ही आया होगा| चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि इतना धन देखकर उसकी पत्नी हीरादे बहुत खुश होगी| इस धन से वह बड़े चाव से गहने बनवायेगी|
और वह भी युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से रहेगा|
हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे| अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी ऐसी कल्पनाएँ करता हुआ वह घर पहुंचा और धन की गठरी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई|
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फ़ौज का अचानक जालौर की तरफ वापस कूच करने का राज समझ आ गया|
और समझती भी क्यों नहीं आखिर वह भी एक क्षत्रिय नारी थी| वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज खिलजी को बता दिया है!
हीरादे ने एक क्षण नहीं लगाया विद्युत गति से तलवार म्यान से खींची और अपने पति का सर धड़ से अलग कर दिया, असल मे इसका पति लालची और कपटी था उसने जालौर किले के कई राज खिलजी को दे दिए थे जिससे प्रभावित होकर खिलजी ने इसके पति को माला माल कर दिया था, हीरादे को यह बात पसन्द नही आई और उसने सोचा एक गद्दार की सुहागिन पत्नी होकर रहने से अच्छा है कि वो विधवा रहे!
और उसने ऐसा ही किया यह महान उदहारण है अच्छे चरित्र का और असली भारतीय महिला का जिसने अपने राज्य(जालोर) से हुई गद्दारी को सहन नही किया.
उस काल के शासक का नाम कान्हड़देव था उनके सामने हीरादे अपने पति का कटा सर लेकर गयी राजा चल पड़े खिलजी से लोहा लेने….
उस जमाने के एक कवि ने क्या खूब लिखा है-
“हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ”
अर्थात: चांडाल का मुह हमें आज देखना पड़ा हीरादे!