खरी- अखरी
हाईकोर्ट की सख़्त टिप्पणी – रदद् की एफआईआर

मर्कज में आये विदेशियों को बनाया गया बलि का बकरा
मीडिया ने किया जमकर किया दुष्प्रचार
मुसलमानों में भय पैदा कर दी गई चेतावनी
लुप्त कर दी गई अतिथि देवो भव की संस्कृति और परम्परा
प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़े स्तर पर मर्कज दिल्ली में शामिल होने वाले विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ प्रोपेगेंडा किया गया और ऐसी तस्वीर बनाने का प्रयास किया गया कि ये विदेशी भारत में कोविड 19 वायरस फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार थे । इन विदेशियों का वस्तुतः उत्पीड़न किया गया ।
जब महामारी या विपत्ति आती है तब एक राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढ़ने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि इस बात की संभावना है कि इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था ।
वर्तमान मामले की परिस्थितियां सवाल पैदा करती हैं कि क्या हम वास्तव में अपनी महान परम्परा और संस्कृति अतिथि देवो भव के अनुसार काम कर रहे हैं ।
भारतीय मुसलमानों को अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी गई कि किसी भी रूप में और किसी भी चीज़ के लिए मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है । अन्य देशों के मुसलमानों के साथ सम्पर्क रखने के लिए भी उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जायेगी ।
विदेशी नागरिकों और मुस्लिमों के ख़िलाफ़ उनकी कथित गतिविधियों के लिए की गई कार्रवाई से द्वेष की बू आ रही है ।
राज्य सरकार ने राजनीतिक मज़बूरी के तहत काम किया और विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण मानी जा सकती है । सभी याचिकाओं को अनुमति देते हुए एफआईआर को रद्द किया जाता है ।
उपरोक्त बेबाक टिप्पणियां बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति द्वय टी वी नलवाड़े और एम जी सेवलिकर ने 29 विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने का निर्णय पारित करते हुए की हैं ।
पुलिस अधीक्षक अहमदनगर (महाराष्ट्र) के अनुसार पुलिस ने दिल्ली स्थित निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने आए 29 विदेशी नागरिकों के द्वारा टूरिस्ट वीजा का उल्लंघन करने पर एफआईआर आईपीसी, महामारी रोग अधिनियम, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम, और विदेशी नागरिक अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की थी । इसके साथ ही पुलिस ने इन विदेशी नागरिकों को आश्रय देने के आरोप में 6 भारतीय नागरिकों सहित मस्जिदों के ट्रस्टियों पर भी मामला क़ायम किया था ।
पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को आइवरी कोस्ट, घाना, तंजानिया, जिबूती, बेनिन, इंडोनिशिया जैसे देशों से संबंधित विदेशी नागरिकों ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ में तीन अलग – अलग याचिकायें दाख़िल कर चुनौती दी गई थी ।
पुलिस अधीक्षक अहमदनगर की ओर से न्यायालय में दाख़िल जवाब में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं को इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए घूमते हुए, अलग – अलग क्षेत्रों की मस्ज़िदों में रह कर लॉक डाउन के आदेशों, निर्देशों का उल्लंघन कर नमाज़ अदा करने की कथित गुप्त सूचनाओं के बाद इन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188, 269, 270, 290 के तहत धारा 37(1)(3) आर/डब्लू, महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम 1951 के 135, महाराष्ट्र कोविड 19 उपाय और नियम 2020 के सेक्शन 11, महामारी रोग अधिनियम1897 की धारा 2, 3 और 4, विदेशियों के लिए अधिनियम 1946 की धारा 14(बी), आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के सेक्शन 51(बी) के तहत अपराध दर्ज किया गया ।
याचिककर्त्ताओं कहना था कि वे भारत सरकार द्वारा जारी किए गए वैध वीजा पर भारत आये हैं । भारत पहुंचने के बाद हवाई अड्डे पर उनकी कोविड 19 की जांच की गई । रिपोर्ट निगेटिव पाये जाने के बाद उन्हें हवाई अड्डे से बाहर जाने की अनुमति दी गई । पुलिस अधीक्षक अहमदनगर को आने की सूचना दी गई । लॉक डाउन घोषित कर दिए जाने से वाहनों की आवाजाही बंद हो गई, होटल, लॉज बंद हो गए तब मस्जिद ने उन्हें आश्रय दिया था । उनके द्वारा न तो किसी आदेश का उल्लंघन किया गया है न ही वे किसी भी तरह की अवैध गतिविधियों में शामिल हैं ।
उनका तर्क था कि वीजा दिए जाने के दौरान भी उन्हें स्थानीय अधिकारियों को अपनी यात्राओं के बारे में सूचना देने के लिए नहीं कहा गया फिर भी उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को सूचित किया है । इसके अलावा वीजा की शर्तों के तहत मस्जिद जैसे धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए कोई निषेध नहीं था ।
वीजा शर्तों पर अध्ययन के बाद न्यायमूर्ति नलवाड़े ने कहा कि पेश किए गए रिकॉर्ड से पता चलता है कि हाल ही में नवीनीकृत किये गए मैनुअल ऑफ़ वीजा के तहत भी धार्मिक स्थानों पर जाने, धार्मिक प्रवचनों में शामिल होने जैसी सामान्य धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए विदेशियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है । न्यायमूर्ति नलवाड़े ने यह भी कहा कि तब्लीगी जमात मुस्लिमों का अलग सम्प्रदाय नहीं है बल्कि यह धर्म के सुधार के लिए आंदोलन है । हर धर्म सालों तक सुधार के कारण विकसित हुआ है क्योंकि समाज में परिवर्तन के कारण और भौतिक दुनिया में हुए विकास के कारण सुधार हमेशा आवश्यक है । रिकॉर्ड से यह भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि विदेशी नागरिक दूसरे धर्म के व्यक्तियों को इस्लाम में परिवर्तित कर इस्लाम धर्म का विस्तार कर रहे थे ।
न्यायमूर्ति नलवाड़े का कहना है कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि विदेशी भारतीय भाषाओं हिन्दी, उर्दू आदि में बात नहीं करते हैं वे अरबी, फ्रेंच, आदि भाषाओं में बात करते हैं । यह कहा जा सकता है कि विदेशियों का इरादा तब्लीगी जमात के सुधार के बारे में विचारों को जानने का हो सकता है । आरोपों की प्रकृति बहुत अस्पष्ट है और इन आरोपों से यह अनुमान लगाना किसी भी स्तर पर संभव नहीं है कि वे इस्लाम धर्म का प्रसार कर रहे थे और धर्मांतरण का इरादा था ।
न्यायमूर्तियों ने कहा कि उपरोक्त परिस्थितियों और भारत में संक्रमण के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि याचिककर्त्ताओं के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी । अब विदेशियों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई के बारे में पश्चाताप करने और इस तरह की कार्रवाई में हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाने के लिए उचित समय है ।
न्यायमूर्तिगणों ने कहा कि कोविड 19 महामारी के दौरान हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने की आवश्यकता है और हमें अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है विशेष रूप से मौजूदा याचिककर्त्ताओं जैसे मेहमानों के प्रति । मगर हमने उनकी मदद करने के बजाय उन्हें जेलों में बंद कर दिया ।
न्यायमूर्तियों ने अपने फैसले में विशेष रूप से पूरे देश में सीएए और एनआरसी के विरोध का उल्लेख करते हुए कहा है कि जनवरी 2020 से पहले भारत में कई स्थानों पर धरना, जलूस निकाल कर विरोध प्रदर्शन किए गए थे । विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले अधिकांश मुस्लिम थे । यह कहा जा सकता है कि वर्तमान कार्रवाई मुसलमानों के मन में भय पैदा करने के लिए की गई है ।
इसके पहले भी मद्रास हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात के विदेशियों के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करते हुए कहा था कि उन्होंने पर्याप्त नुकसान उठाया है । केन्द्र सरकार को मूल स्थान पर लौटने के उनके अनुरोध पर विचार करना चाहिए ।
साभार अश्वनी बड़गैंया, अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार