हास्य शिरोमणि तब से ही, कहलाये काका


हास्य शिरोमणि काका हाथरसी जी को उनके जन्मदिन की स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरुप उन्हीं की शैली में एक कुंडली आपकी सेवा में समर्पित है:-

काका ने रक्खा सदा, काकी का भी ध्यान।
कविता उन पर ही पढ़ी, किया सदा सम्मान।
किया सदा सम्मान, बहुत से किस्से गाये,
मंचों पर भी काकी को, वे भूल न पाये।
व्यंग्य लिखे छाँट कर, काका ने पुलिस पे भारी,
हंस-हंसकर काका ने, कर दी सबकी ख्वारी।
कर दी सबकी ख्वारी, हंसते पुलिस वाले,
फँसे बीच श्रोताओं के, पड़े जुवां पे ताले।
मच्छर खच्चर ताला ताली,परभी कविता गायी,
हास्य विधा की काका ने,मंचोंपर जगह बनायी।
कहें ‘शम्स’ कविराय,इधर ना उधर को झाँका,
हास्य शिरोमणि तब से ही, कहलाये काका।

राकेश ‘शम्स’
एटा (उ.प्र)

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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