साजन सँग जो आये थे शहनाई लेकर लौट गये
देने वाले के मन मे जो आई लेकर लौट गये ।

उसको सूनी आँख न भाई आँसूं की नदियाँ दे दी
हम तेरी बिछड़न की ये भरपाई लेकर लौट गये ।
तेरी खुशियां माँगी हमने अपनी चिन्ता कहाँ हमें
अपने क़दमों में अपनी परछाई लेकर लौट गये ।
वो शबाब और हुश्न के आगे क्या लेते और क्यूँ लेते
मद छलकाती आँखे थी अंगड़ाई लेकर लौट गये ।
हमको वो पीनी थी जिसका नशा उम्र भर ना उतरे
उसने आँखों से जितनी छलकाई लेकर लौट गये ।
फ़टे हुए रिश्तों के चिथड़े उसने अपने पास रखे
हम दिल पर उन हाथों से तुरपाई लेकर लौट गये ।
रोती और बिलखती यादें लेकर ‘सागर’ क्या करते
सूने मन मे हम अपनी तन्हाई लेकर लौट गये ।
🖋️ कवयित्री
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