शव और शिव के बीच की कड़ी ही काशी या बनारस है।

शव और शिव के बीच की कड़ी ही काशी या बनारस है।

वाराणसी

यूँ तो भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है लेकिन एक बनारस ही है जहाँ भाषा अपने मूल अर्थ खोकर शिवत्व को प्राप्त हो जाती है। यहाँ का व्याकरण किसी शास्त्र का आधीन नहीं है अपितु यह शिव के गणो दद्वारा नित नये नये रूप लेकर सृजित होता रहता है।
संतुष्टि का जो भाव बनारस में है वह संसार में कहीं नहीं मिलता। एक बनारसी गरीब हो या
अमीर तब तक जांगर नही डौलाता जब तक नितान्त आवश्यक या अभाव न हो।
बाहर से यह आलस्य प्रतीत होता है लेकिन गूढल यह परमपद कैवल्य निर्वाण अथवा मोक्ष की ही अवस्था है।
जहाँ सगरल संसार प्रवृति या निवृति में जीता है वहीं काशीवासी इन दोनों के बीच बन्द रहित स्थिा जीता है। मेरी अपनी दृ‌ष्टि काशीदनारत को समझाने के बजाए महसूस किया जा सकता है। क्योंकि इसे करना ठीक वैसे ही है जैसे भाषा ही अनजान व्यक्ति से व्याकरण पर भावार्य करना।
निल नया परस्पर विरोधी विचित्र अद्‌भुत और सबै समावेशी ही फारस है।
काशी की एक और नाम आनन्द वन में भी जाना जाता है। जहाँ गन अलि दुरु और बीन की प्रतीत होता है। वही आनन्द-वन, काशी/बनारस सरलता से ओतप्रोत होते हुए भी सूद और अप्रत्याशित है।
ज्ञान की पराकाष्ठा पर उत्पन्न वितराग वैराग जिस स्थान पर आनन्दित हो अनुराग मै
परिणित हो वही काशी है।
काशी के किसी क्षेत्र गे आईये ज्ञान वैरात्य और आनन्द का एक मिश्रित रस ही मिलेगा जो बनारस है। बाहर से देखने पर बनारस सुस्त और मंद दिखता है। ब्रह्मांड की ऊर्जा का यह मस्तिष्क रूपी केन्द्र बनारस। शरीर रूपी समग्र संसार को ठीक उसी प्रकार निर्देशित करता है जिस प्रकार शरीर की समस्त अंग व कोशिकाओं को मस्तिष्क से निर्देश प्राप्त होता है।
मेरी समझ में शिव काशी के हैं। शिव की काशी कहना शिव और काशी दोनों की महत्ता को
सीमित करता है।
काशी अघोर है अतएव यहाँ शिव भी अघोर हैं।
अघोर अर्थात जो घोर जटिल न हो जिसमें बच्चों सी सरलता हो। जो भेद मुक्त हो।
निद्वन्द और उनमुक्त हो 13 दिसम्बर सन 2021 को श्री काशी विश्वनाथ धाम कारीडोर का उ‌द्घाटन हुआ। समस्त काशी वासी अब गर्व से कहते है। हम बनारस में रहते हैं। पुरे भारत एवं पुरे विश्व से भारी संख्या में श्रद्‌धालु श्री काशी विश्वनाथ धाम का दर्शन करने आ रहें है।
संस्कृति विभाग की तरफ से बुधवार 13 दिसम्बर को दोपहर 12 बजे से भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी। काशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण के वर्षगाठ पर शिव बारात समिति दवारा आयोजित लोक महोत्सव के नाम से निकलने वाली शोभायात्रा आने वाले कल के इतिहास की पटकथा है। काशी विश्वनाथ धाम को बनाने वाले कल रहे या ना रहे लेकिन सैकड़ों साल बाद भी उनका नाम रहेगा। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं इनके सहयोगी योगी आदित्यनाथ के इस महानहत्स्य की याद हर लोकार्पण दिवस पर निकलने वाली शोभायात्रा याद दिलाती रहेगी।
जगदम्बा तुलस्यान अध्यक्ष
तिवारी चौयरी मिश्रा बहुत सिंह
यह शोभायात्रा मैदागिन से चलकर दोपहर 2.30 बजे तक चितरंजन पार्क तक जाएगी। इस शोभायात्रा को आमजन का लोक उत्सव कहा आयेगा। बनारस के समस्त धार्मिक सामाजिक संस्थाओं से अपील किया गया है कि अपनी संस्था के बैनर के साथ 13 दिसम्बर को काशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण दिवस पर निकलने वाली शोभायात्रा में शामिल हो। यह शोभायात्रा काशी
हरी डंडान का सुझाव है
के समस्त शिव भक्ती की शोभायात्रा के रूप में जाना जायेगा।
शिव बारात समिति के सचिव दिलीप सिंह जी ने बताया की लोक उत्सव के रूप में
सुनार कुमार खन्ना पोली
जायसवाल कुनार सिंह कुकरेजा धवन बंटी बन्द्र माहेश्वरी कुमार जायसवाल मिश्रा दमदार बनारसी तुलस्यान निकलने वाली शोभायात्रा में बनारस के प्रमुख सन्त महात्मा रथ पर शामिल होंगे। इंडिया ग्रुप रहेगा। भगवान के स्वरुप चंद्रयान का माइल अयोध्या में हो रहे राम मंदिर के नव निर्माण की झांकी नारी शसक्तीकरण बिल इत्यादि को झांकी के रूप में शामिल किया जायेगा। परम्परागत ढंग से बैंड ढोल भगवान के स्वरुप भी शामिल किया जायेगा।
अनेक संस्थाओं के तरफ से जगह-जगह शोभायात्रा का स्वागत एवं पुष्प वर्षों किया जायेगा।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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