औरैया _ किससे छुपी है सरकारी स्कूलों की बदहाली, सब कुछ जानते हुए विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे, प्रतिक्रिया देने से पीछे रहे अधिकारी
औरैया – उच्च प्राथमिक विद्यालय ( कम्पोजिट) में बच्चों के भविष्य के साथ किया जा रहा खिलवाड़

प्रदेश में गांव – गांव और शहरी क्षेत्रों में बच्चों में शिक्षा की ललक जगाने और उन्हें स्कूल तक लाने के लिए ‘स्कूल चलों अभियान एवं निपुण विघालय बनाने को लेकर मुख्यमंत्री योगी की मंशा पर पलीता लगाते नज़र आ रहे हैं विघालय के अध्यापक,
आपको बताते चलें कि औरैया विकास खण्ड के ग्राम पैगम्बरपुर के उच्च प्राथमिक विद्यालय (कम्पोजिट) में दिनांक 3 नवंबर 2023 दिन शुक्रवार को इस स्कूल में जो रवैया दिखा उससे यही लगता हैं कि विघालय के अध्यापक बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं,
जुनियर के बच्चों को फर्नीचर में ना बैठाकर जमींन पर बैठाकर एक ही कक्षा रूम प्राइमरी में बैठाकर कराते हैं पढ़ाई ,
विघालय में उपस्थित 12 बच्चे एक ही कक्षा में बैठे पाये गये,जब कि जुनियर विघालय के बच्चों के साथ बैठाकर पढाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती हैं, एवम् विघालय की छात्र उपस्थिति भी बेहत न्युन पाई है
विघालय में 5 अध्यापक नियुक्त होते हुए भी मात्र एक शिक्षक उपस्थित मिले बाकी चार अनुपस्थित थे,
अध्यापक उपस्थित रजिस्टर,मिड डे मील रजिस्टर मांगने पर इनकार कर दिया, जिससे ये पता नही चल पाया कि विघालय में कुल कितने बच्चे नामांकित हैं,
विघालय में कक्षा 1 से 8 तक कुल 12 बच्चे उपस्थित मिले, विघालय में छात्र उपस्थिति भी ना के बराबर पाई गई, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि मीड डे मील की कन्वर्जन राशि व खाद्यान्न का गबन भी किया जाता होगा,
कक्षा 1 से 8 के बच्चे हिन्दी अंग्रेजी की किताब नहीं पढना जानते, आधा सत्र बीत जाने के बाद भी बच्चों का कोर्स पूरा नहीं कोई बच्चे नही दिखा सके कापियां
आखिर सरकार की मंशा अनुसार इस विधालय के बच्चे हिन्दी अंग्रेजी व गणित विषयों में निपुण कैसे हो पायेंगे, जबकि सरकार का लक्ष्य है कि 31 मार्च 2024 तक सभी बच्चों को स्कूल को निपुण बनाया जाये,
शिक्षक आखिर विघालय में क्या करते हैं, विघालय इस शुन्य शैक्षिक स्तर बच्चों को और विघालय को कबतक निपुण बनाएगा,
ऐसे गैर जिम्मेदार भाषा शिक्षक पर विभाग कबतक कार्यवाही करेगा,
आपको बताते चलें लगभग 17/ 18 वर्षों से अपने घर के निकट एक ही विघालय में जमे उर्दू अध्यापक (भाषा शिक्षक) क्या पढ़ाते हैं, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि विघालय के अध्यापक फ्री का बेतन पा रहे हैं आखिर विभाग ऐसे पढाई के प्रति उदासीन शिक्षकों पर सख्त से सख्त कार्रवाई कब करेगा,
हैरत करने वाली बात तो ये है विडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता हैं कि मिड-डे मील में सब्जी हेतू बेहद सड़े आलू का किया जा रहा है प्रयोग, मिड-डे मील में गैस सिलेंडर चूल्हे का प्रयोग ना होकर आज भी लकड़ियां जलाकर ईंटों का चूल्हा बनाकर खाना पकाया जा रहा है,
बच्चों को जानकारी नहीं है कुल कितनी किताबें हैं, अध्यापक द्वारा कितना कोर्स लिखाया गया कापियां चेक है या नहीं, किसी बच्चे के पास उपलब्ध नहीं थी,
कक्षा 7 के बच्चों को गणित में साधारण वर्ग का ज्ञान नहीं, बच्चा दो वर्ग नही बता पाया, कक्षा 5 का बच्चा हिन्दी की किताब नहीं पढ पाया,
विघालय में बच्चे विघालय सम्बंधित कार्य ना करते हुए अपने घर के कोचिंग का कार्य कापी में करते पाये गये,
बच्चों को किसी भी विषय के कोई भी पाठ याद नहीं है,
विघालय में कुछ राष्ट्रीय ध्वज के झंडे जमींन पर पड़े हुए पाये गये जो मीडिया कर्मियों द्वारा स-सम्मान जमींन से उठाकर मेज पर रख दिये गये,
विघालय की स्तिथि देखकर लगता हैं कि रंग रोगन, शौचालयों की सफाई नहीं कराई जाती हैं, प्रत्येक वर्ष विघालय को मिलने वाली कम्पोजिट ग्रान्ट का भी गबन किया जा रहा है,
हैरत करने वाली बात ये है कि कक्षा 7 के बच्चों को गणित में साधारण वर्ग का ज्ञान नहीं है, बच्चा दो का वर्ग भी नही बता पाया,
आपकों बताते चलें दिनांक 3 नवंबर 2023 दिन शुक्रवार को इस स्कूल में जो रवैया दिखा उससे सवाल उठना लाजमी है कि क्या प्राइमरी स्कूल मुख्यमंत्री योगी की उम्मीदों पर कैसे खरे उतर पायेंगे,
विडियो में साफ़ तौर पर देखा जा सकता हैं कि उच्च प्राथमिक विद्यालय (कम्पोजिट) विकास खण्ड औरैया के ग्राम पैगम्बरपुर के विघालय में शैक्षिक स्तर बिल्कुल शुन्य हैं जैसे कि कक्षा 1 से लेकर 8 तक के कोई भी बच्चे अंग्रेजी नहीं पढ़ पाते हैं बच्चों ने बताया कि हमें अंग्रेजी पढ़ना नही आता है,
तस्वीरों में साफ तौर पर देखा जा सकता हैं,विघालय के मेन गेट पर एवं आस पास गंदगी का अम्बार लगा है,और शौचालयों की स्थिति बद से बद्तर है, ऐसा लग रहा था कि जैसे वर्षों से दरवाज़े खुले ही ना हो, शौचालयों अंदर बहुत गंदगी देखी गई,
प्राइमरी के हेड मास्टर जो कि कम्पोजिट होने के उपरांत जुनियर में भाषा विषय के सहायक अध्यापक के रूप में पद पर स्थापित है, किन्तु वो अभी भी अपने को प्राइमरी का हेड मानते हैं और जुनियर के किसी भी कक्षा एवम् बच्चों बिल्कुल भी नहीं पढ़ाते हैं,
मीडिया के निरीक्षण मे कक्षा वार उपस्थिति ये है- कक्षा 01 में- कुल 02, कक्षा 02 में- शून्य, कक्षा 03 में-शून्य, कक्षा 04 में-05, कक्षा 05 में-02, कक्षा 06 में-02 कक्षा 07 में-01 और कक्षा 08 में-शून्य इस प्रकार विघालय में कुल-12 ही बच्चे उपस्थिति पाये गये, जो कि छात्र संख्या भी ना के बराबर पाई गई, अब देखने वाली बात ये होगी कि आख़िर ऐसे नाकारा शिक्षकों पर विभाग कब कार्यवाही करेगा,
एंकर_ लास्ट बच्चों में शिक्षा की ललक जगाने और उन्हें स्कूल तक लाने के लिए ‘स्कूल चलो अभियान एवं निपुण विघालय बनाने को लेकर मुख्यमंत्री योगी के सपनो को कैसे सकार करेंगे,
इस सच से भला कौन मुकरेगा
कि भारत में शिक्षा व्यवस्था उसमें भी खासकर तमाम प्रदेशों के सरकारी स्कूल उस मुकाम तक नहीं पहुंच सके जिसकी उम्मीद थी। यह भी सच्चाई है कि जिनके लिए और जिनके सहारे सारी कवायद होती है वही शिक्षक केवल रस्म निभाते दिखते हैं। सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर व्यावसायिक तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है।
यही कारण है कि बड़े कॉर्पोरेट और व्यावसायिक घरानों के स्कूल फाइव स्टार जैसी चमक दिखाकर जहां रईसों में लोकप्रिय हैं वहीं मध्यमवर्गीय लोगों की पसंद के अपनी खास चमक-दमक, लुभावनी वर्दी, कंधों पर भारी-भरकम स्कूल बैग और तमाम आडंबरों वाले अनगिनत निजी स्कूल देश की बड़ी आबादी की अच्छी-खासी जेब ढीली कर रहे हैं। अंत में बचते हैं साधारण, गरीब व बेहद गरीब तबके के लोग जिनके लिए सिवाय सरकारी स्कूलों के और कोई रास्ता ही नहीं बचता।
ऐसे अधिकांश सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की मनमानी, एक शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल, संसाधनों की कमी, बिल्डिंग का रोना और दूसरी मनमानियों का खुला खेल चलता है। नीतियां चाहे जितनी बन जाएं लेकिन सरकारी स्कूलों में चल रही रीतियां बदले बिना सुधार दिखता नहीं।
जहां सरकारी शिक्षक प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले बेहद अच्छी पगार और ढेरों सुविधाएं पाकर भी स्कूलों की व्यवस्था नहीं सुधार पाते हैं वहीं सरकार भी स्कूलों की मुरम्मत, रख-रखाव और रंग-रोगन के लिए दिए हुए पैसों के सही इस्तेमाल के लिए कोई खास कदम नहीं उठाती है। यही वजह है कि हर प्रदेश के शहरों से गांवों तक के प्राइमरी से लेकर हायर सैकेंडरी स्कूलों की हालत देखते ही सामने वाला समझ जाता है कि यही इलाके का सरकारी स्कूल है! इसी वजह से नकल की बीमारी, दादागिरी या संगठित शिक्षा माफिया तेजी से पनपते हैं। सच है कि देश में प्रतिभाओं की कमीं नहीं है। दुनिया में भारत के लोग डंका भी बजा रहे हैं। यह सुखद और उपलब्धिपूर्ण ही है क्योंकि देश के 80 से 90 फीसदी सरकारी स्कूलों में प्राइमरी से लेकर हायर सैकेंडरी की तमाम व्यवस्थाएं भगवान भरोसे हैं।