
आज पेरियार साहब की जयंती पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई व मंगलकामनाएं
पेरियार द्वारा धर्म की आलोचना, विशेषरूप से हिंदू धर्म की आलोचना; उनके नास्तिक होने तक सीमित कर दी जाती है। जबकि इसके व्यापक संदर्भ हैं।
पेरियार का निष्कर्ष था कि धर्म जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन को न्यायोचित ठहराता है; साथ ही धर्म जाति-आधारित भेदभाव को सांस्थानिक वैधता प्रदान करता है। इस मामले में सभी शास्त्र, इतिहास, पुराणादि पूर्णतः स्पष्ट हैं। उनका कहना था कि इन धर्म ग्रंथों को महज शूद्रों और पंचमों (अछूतो) के जीवन को नियंत्रित करने के लिए नहीं रचा गया था, बल्कि उनकी रचना शूद्रों और पंचमों (अछूतो) को उनकी तुच्छता का बोध कराने और उसे स्वीकारने के लिए की गई थी।
उन्होंने पाया था कि हिंदू धर्म सिवाय ब्राह्मण के किसी और को पढ़ने-लिखने की अनुमति नहीं देता है बाकी लोग किसी शिल्पकला को सीख सकते हैं अथवा अपने व्यापार में पारंगत हो सकते हैं; परंतु वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते । यही कारण है कि बाकी लोगों को ईश्वर अथवा धार्मिक कार्य-कलाप को लेकर सवाल करने की अनुमति नहीं थी। अर्थात उन्हें मुक्त चिंतन और आसपास की दुनिया को जानने-समझने के अधिकार से ही वंचित कर दिया गया था।