पर्यावरण में होने वाले बदलावों की वैज्ञानिक भविष्यवाणियां साधारण इंसानों के लिए पूरी तरह समझ पाना कठिन है


हम गरम होते तापमान, बढ़ते समुद्री जल-स्तर, कैंसर की बढ़ती दर, जनसंख्या वृद्धि, संसाधनों की कमी और विभिन्न जीव-प्रजातियों के विलुप्त होने के बारे में सुनते रहते हैं। हर जगह मानवीय गतिविधि कुदरती पारिस्थितिकी-प्रणाली के प्रमुख तत्वों को नष्ट करने की ओर तेजी से बढ़ रही है, जिन पर सभी जीवित प्राणी निर्भर हैं।
ये खतरनाक घटनाक्रम कठोर और साथ ही अद्भुत हैं। दुनिया की जनसंख्या पिछली सदी में ही तिगुनी हो चुकी थी और मौजूदा सदी में इसके दोगुना होने की संभावना है। वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से बढे़गी, तो ऊर्जा खपत की दर भी काफी होगी, कार्बन डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन और वनों की कटाई भी बढे़गी। हमारे जीवनकाल में ही जिस तेजी से चीजें घटित हुई हैं, उसकी कल्पना करना कठिन था। इसलिए हमें मानव इतिहास की अन्य किसी भी चीज से ज्यादा वैश्विक पीड़ा व पर्यावरणीय क्षति पर विचार करने की जरूरत है।
पिछली सदी में हमने काफी गरीबी, युद्ध, प्रदूषण व पीड़ा देखी है। ऐसी चीजें अज्ञानता और स्वार्थ के कारण होती हैं, क्योंकि हम अक्सर सभी प्राणियों के सामान्य संबंध को देखने में नाकाम रहते हैं। धरती तो हमें गलत दिशा वाले मानवीय कृत्यों के बारे में बार-बार आगाह करती रहती है, इसलिए हमें पारस्परिक निर्भरता के प्रति अधिक जागरूक होना होगा। धरती का हर संवेदनशील प्राणी सुख चाहता है। हम सब समान बुनियादी भावना साझा करते हैं। इसलिए, मैं हमेशा सार्वभौमिक जिम्मेदारी की भावना विकसित करने की बात करता हूं।
जब हम ज्ञान और करुणा से प्रेरित होते हैं, तब हमारे कार्यों के प्रतिफल से सबको लाभ होता है, केवल हमें व्यक्तिगत रूप से फायदा नहीं होता। जब हम अज्ञानता से भरे पुराने कार्यों को जान जाते हैं और माफ करने में सक्षम हो जाते हैं, तब हमें मौजूदा समस्याओं को रचनात्मक तरीके से सुलझाने की ताकत मिलती है।
हमें अपने पूरे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनने के नजरिये का विस्तार करना चाहिए। एक बुनियादी सिद्धांत के तौर पर पूरी दृढ़ता से इस बात का पालन करना चाहिए कि यदि हम मदद कर सके, तो बेहतर और यदि मदद नहीं कर सकते, तो कम से कम नुकसान न पहुंचाने का प्रयास करें। जब अद्वितीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के जटिल अंतर-संबंधों के बारे में बहुत कुछ जानना-समझना बाकी है, तब यही सिद्धांत हमारा मार्गदर्शक है। यह धरती हमारा घर और हमारी मां है। हमें इसका सम्मान और इसकी देखभाल करने की जरूरत है। इसे समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिए।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks