आचार्य देवराज शास्त्री जी समाज, साहित्य और संस्कृति को समर्पित व्यक्तित्व


आचार्य देवराज शास्त्री जी समाज, साहित्य और संस्कृति को समर्पित व्यक्तित्व

आचार्य जय प्रकाश शास्त्री
धर्माचार्य आर्य समाज मॉडल बस्ती नई दिल्ली।
संस्थापक आर्य समाज हिम्मतपुर काका मई, एटा ।

वदन प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचोवाचः।
करणं परोपकरणं येषां न, ते वन्द्याः ।।
‘जिनका मुख प्रसन्नता का घर है, हृदय दया से युक्त है, अमृत के समान मधुर वाणी है,
जो सदा परोपकार करते हैं, वे किसके वन्दनीय नहीं होते हैं । आर्य जगत की महान विभूति, महर्षि दयानन्द सरस्वती एवं आर्य समाज के विचारों के संवाहक, आर्ष पाठ विधि के उन्नायक, शिक्षा, देशप्रेम, भारतीयता, राष्ट्रप्रेम, समाजसेवा में अहर्निश जीवन को समर्पित करने वाले युगपुरुष, महान तपस्वी, कर्मयोगी, स्वर्गीय आचार्य देवराज शास्त्री जी को कितने ही विशेषणों से अलंकृत किया जाए कम ही है। आचार्य जी बचपन से ही निर्भीक व्यक्तित्व के धनी थे तथा सदैव एक योद्धा की भांति अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर रहे। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व एक समान था। वहीं उनके जीवन में हमें कोई बनावटीपन देखने को नहीं मिलता है। आर्ष गुरुकुल यज्ञतीर्थ एटा का कुशल संचालन एवं संरक्षण उनके जीवन का जीवंत उदाहरण है। पूज्य आचार्य जी ने अपने जीवनकाल में आर्ष गुरुकुल यज्ञतीर्थ एटा के माध्यम से हजारों समर्पित वैदिक विद्वान, प्रोफेसर, लेक्चरर, अध्यापक, आर्य कार्यकर्ता, राष्ट्रभक्त तैयार किए जो देश व विदेशों में गुरुकुल एटा का नाम रोशन करते हुए समाज एवं राष्ट्र की सेवा में समर्पित भाव से अनवरत लगे हुए हैं । समस्त आर्य जगत में श्रद्धेय आचार्य देवराज शास्त्री जी का नाम बड़े ही श्रद्धाभाव व सम्मान के साथ लिया जाता है। दिल्ली, मुम्बई सहित देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, स्कूलों, गुरुकुलों में एटा गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों की उपस्थिति से ही आचार्य जी के कार्यों का अंदाजा लगाया जा सकता है। एटा जैसे स्थान पर गुरुकुल एटा की संपत्ति का इतने लम्बे समय तक रखरखाव करना इतना आसान नहीं था जितना हमें लगता है। समय-समय पर अनेक माफियाओं की गिद्ध दृष्टि सदैव इस सम्पत्ति पर रही है परंतु आचार्य देवराज शास्त्री जी ने अपने राजनैतिक और सामाजिक प्रभाव के चलते निर्भीकता से संघर्ष करते हुए आजीवन गुरुकुल की सम्पत्ति को अपने पुत्रवत सुरक्षित रखा । आचार्य जी का राजनैतिक एवं सामाजिक प्रभाव केवल एटा जनपद में ही नहीं था अपितु पड़ोसी जनपदों कासगंज, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, मथुरा, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, कानपुर सहित उत्तर प्रदेश के अनेकों जनपदों में भी था। उत्तर प्रदेश के बहुत बड़े भूभाग सहित भारत में आर्य जगत में आचार्य जी का नाम बड़े ही श्रद्धा व सम्मान से लिया जाता है। श्रद्धेय आचार्य जी का पूरा जीवन समाजसेवा में ही व्यतीत हुआ । वही एक मात्र उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था । वे एक ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी थे जिस सभा, समारोह में पहुंचते लोगों का हुजूम उन्हें देखते ही उनके चरण स्पर्श करने एवं आशीर्वाद लेने हेतु दौड़ पड़ता था । वे एक सच्चे योगी थे । प्रातः काल एवं सांय काल योगाभ्यास, व्यायाम, प्राणायाम संध्या, यज्ञ, ध्यान साधना उनके जीवन के अभिन्न अंग रहे और जीवन पर्यंत उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन कर रहे । आचार्य जी अनेक आर्य संस्थाओं के जनक भी कहे जाते हैं जिसका जीता जागता उदाहरण एटा जनपद की प्रसिद्ध आर्य समाज हिम्मतपुर काकामई है। जिसकी स्थापना का श्रेय श्रद्धेय आचार्य जी को ही जाता है। ग्राम हिम्मतपुर काकामई में आयोजित हुए एक आर्य समाज के कार्यक्रम में आचार्य जी ने मंच से उद्बोधन देते हुए ही आर्ष विद्यापीठ झज्जर के प्रस्तोता और उसी गांव के निवासी श्री ज्ञानवीर सिंह जी पुरुषार्थी से आग्रह किया कि "इस गांव में आर्य समाज की गतिविधियां तो लगभग 50 वर्षों से चल रहीं हैं परंतु यहां स्थान अभाव के कारण कोई स्थाई भवन नहीं है। मेरी इच्छा है कि इस गांव में एक आर्य समाज की स्थापना की जाए जिसके लिए आप भूमि दान करें" आचार्य जी के इस आग्रह को उन्होंने सहर्ष स्वीकार करते हुए उसी पल भूमि दान करने की घोषणा की और आज वहां पर एक सुंदर आर्य समाज का भवन बना हुआ है। जिसके माध्यम से महर्षि दयानन्द सरस्वती जी और आर्य समाज के विचारों को आगे बढ़ाया जा रहा है। संस्कृत भाषा के उन्नयन के साथ-साथ हिंदी भाषा एवं साहित्य के संवर्धन हेतु आचार्य जी सदैव प्रयासरत रहे। कवियों को हमारे शास्त्रों में साधारण मानव नहीं माना है। कविर्मनीषी परिभू स्वयंभू अर्थात कवि मनीषी परिभू यानी सर्व व्याप्त है स्वयंभू अर्थात अनादि है । आचार्य जी इसी भाव से कवियों को विशेष सम्मान देते थे तथा पूर्ण मनोयोग से उन्हें सुनते थे। उनकी कविताएं सुनने के लिए ही अवसर विशेष पर प्रायः आर्ष गुरुकुल एटा में काव्य गोष्ठियां आयोजित कराते रहते थे । कवियों को श्रेष्ठ लेखन के लिए प्रोत्साहित करना नहीं भूलते थे।

ग्राम नावली निवासी शिक्षक के. पी. सिंह आर्य जी के भतीजे अमर शहीद वीरेश यादव जी की पुण्यतिथि पर कई वर्षों तक हुए अ.भा. कवि सम्मेलन के आशीष प्रदाता रहे। हर सम्मेलन में उनकी गरिमामयी उपस्थिति रही। गीत ऋषि गोपालदास नीरज पर जब एक टैली फिल्म बनी और निर्माता निर्देशकों ने सूटिंग के लिए आर्ष गुरुकुल एटा को पसन्द किया तो आचार्य श्री ने सहर्ष स्वीकृति देदी। आचार्य जी ने सारी व्यवस्था अपनी देख रेख में करवायी और नगर के समस्त मूर्धन्य साहित्यकारों को आमंत्रित किया। गुरुकुल एटा में नीरज जी की उपस्थिति में यह अदभुत और भव्य साहित्यिक आयोजन सम्पन्न हुआ। जिस किसी कवि या लेखक ने उन्हें अपनी प्रकाशित पुस्तक भेंट की तो उसका अध्ययन जरूर किया साथ ही अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी भी लिखकर दी। एटा के सुविख्यात वरिष्ठ कवि प्रभात किरन जी सप्ताह में एक बार आचार्य जी से मिलने और अपनी नई रचनाएं सुनाने जरूर जाते थे। आचार्य जी को उनकी एक कविता बहुत पसंद थी –

कर रहा ऐलान भ्रष्टाचार कोई रोक ले,
तू या तेरी सरकार कोई रोक ले।
आचार्य जी से कवियों व लेखकों को नए विचार शब्द और लेखन की नई थीम मिल जाया करती थी । वह स्वयं भी अच्छे लेखक थे।
श्रद्धेय आचार्य जी का निर्वाण दिनांक 15 जुलाई 2022 को हो गया । ऐसे महान तपस्वी का इस जगत से जाना इस राष्ट्र की हानि है जिसकी पूर्ति सदियों में नहीं की जा सकती । उनके निधन से संपूर्ण आर्य जगत की अपूर्णीय क्षति हुई है।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी के अनन्य भक्त पूज्य आचार्य देवराज जी शास्त्री ने ऋषियों की परंपरा और वेद के लिए पूरे जीवन जो प्रयास किया है वह अनुकरणीय है जिसे सदैव स्मरण किया जाएगा । ऋषि मुनियों की परम्परा के वाहक पूज्य आचार्य जी की वेदों, दर्शनों, उपनिषदों और व्याकरण के प्रति अटूट आस्था रही । उन्होंने भारतीय संस्कृति को उच्च स्तर पर पहुंचाने के लिए जीवन पर्यंत कार्य किया। वे अपने प्रवचनों में भारतीय संस्कृति, सभ्यता और भारतीय परंपरा पर बहुत बल दिया करते थे । आचार्य जी सादगी और सभ्यता की प्रतिमूर्ति थे। उनके व्याख्यानों, सदाचार, भारतीय संस्कृति सभ्यता के प्रति अटूट आस्था, व्यवहार, शिष्टाचार ने हजारों युवकों के जीवन को बदल दिया था । आर्य जगत में पूज्य आचार्य जी का नाम बड़े श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। पूज्य आचार्य जी आज भी हमारे दिलों में हैं और आजीवन रहेंगे। ऐसे महामानव के जीवन से हम सब सदैव प्रेरणा लेते रहेंगे ।
पूज्य गुरुवर के चरणों में कोटि कोटि नमन और वंदन।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

Learn More →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× अब ई पेपर यहाँ भी उपलब्ध है
अपडेट खबर के लिए इनेबल करें OK No thanks