चीखती औरत बेहरी व्यवस्थाएं—
दीप्ति की कलम से—-

,चीखती औरत बेहरी व्यवस्थाएं—
दीप्ति की कलम से—-
कोरे कागजों पर इतिहास कौन लिखेगा–
मानव ही जब अमानुष बन जाएगा—-
दिल्ली हो या अन्य जगह साक्षी हो या कोई और बेटियां आज जिस तरह से अपराध के बदलते रवैया से कत्ल हो रही है और समाज तमाशा देखता रहता है इस तरह की सोच इस तरह के समाज के हाथों में एक-एक बीन पकड़ा दी जाए ताकि कोबरा जैसे बहरे अपराधी का खुलेआम अपराध वीडियो बनाने और अपराध का गुरु दिक्षा ग्रहण कर सके समाज
अपराध को हौसला देता रहे आज शर्मनाक घटनाएं खुलेआम हो रही है और वीडियो बनाने वाले वीडियो बनाते रहते हैं और अपराधी खुले आम पब्लिक के सामने बेटियां हो या बेटों को सब्जियों की तरह काटते रहते हैं और तमाशाय भीड़ देखती रहती है जैसे किसी फिल्म का सीन देख रही हो अरे पब्लिक और अपराध की ताकत तो सौ सुनार एक लुहार के हथौडे़ जैसी होती है पर किस काम की है समाज की बदलती सोच और चेहरा आज अपराध से भी ज्यादा भयानक भूमिका में दिखाई दे रहा है क्या अपनी बेटी का भी तमाशा इन्हीं आंखों और सोच से देख सकते हो जैसे आज—पता नहीं आप भी इसी आपत्ति के शिकार कब और किस बक्त बन जाएं तब आपको एहसास हो फिर कुछ नहीं बचता है समाज की ताकत जब सरकार का तख्तापलट कर सकती है तो अपराध का क्यों नहीं अपराध आज शहर गांव बस्तियों में इस हौसले से शिकार कर ले जाता है जैसे कि जंगल से भूंखा शेर मानव बस्तियों में आकर मानव निवाला उठा ले जाता है– ऐसे अपाहिज विकलांग मूंक शर्मनाक समाज का कोई फायदा नहीं आज हर घर में बेटियां और महिलाएं हैं समय रहते समाज को अपनी सोच बदलनी होगी वरना बो दिन दूर नहीं जब मानव समाज राक्षस—–आज हम अपने भविष्य को रौशनी देने की बजाय अंधकार की तरफ लिये जा रहे हैं, नई पीढ़ी में हम अपने पूर्वजों और विवेकानंद की छवि देख रहे हैं लेकिन आज की नई पीढ़ी के एक हाथ में शराब की बोतल तो दूसरे में शबाब लिये संस्कारों का खुलेआम चीर हरण कर रहे हैं तब हम अपने आने वाले भविष्य से क्या अपेक्षाएं रख सकते हैं।
कोरे कागजों पर इतिहास कौन लिखेगा,
मानव ही जब अमानुष बन जाएगा—
एसी सोच के चलते हर आदमी अकेला है तमाशाय भीड़ आज किसी काम की नहीं सॉरी अपनी फीलिंग छुपाना मेरे बस में नहीं कहना चाहूंगी जब अपराध इतने भयानक रोल में है तो सजा वही ढाक के तीन पात में क्यों है अब यह कितने दिन तक स्वर्ग नामक जेल में पब्लिक की खून पशीने की रोटियां जेल मे—-आज भय युक्त पीड़ित हैं और भय मुक्त अपराध खुलेआम तांडव करके चलता बन रहा है,भविष्य में ऐसी घटनाओं पर जब पब्लिक की ताकत सौ सुनार और एक लोहार जैसी होती है तब इतनी आसानी से बेटियां कत्ल हो जाती है यह शर्मनाक है हर वर्ग के लिए फिर चाहे रक्षक हो या इंसानियत पब्लिक हो या फिर कानून ओन
स्पॉट जब कातिल पकड़ा जाता है बाकी क्या रह
जाता है जेल में उसे स्वर्ग के जीवन—जबतक कानून में बदलाव नहीं होगा अपराध का चेहरा और भयानक होता जाएगा यह विषय बेहद सोचनीय है इसे समय रहते बदलना जरूरी है आखिर हम कितनी मां बहन और बेटियों के बलिदान घिनौने कंजरो से देते रहेंगे यह हर इंसान और वर्ग के लिए चिंता का विषय है।
लेखिका,पत्रकार, दीप्ति चौहान।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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