@, नए-नए रोंगो की इतनी ज्यादा उत्पत्ति है कि डॉक्टरों की डिग्रियों से बाहर हो चली है——

कभी हम जिस धरती पुत्र किसान को अपना अन्नदाता कहने में गौरव महसूस करते थे आज वही अन्नदाता हमारे जीवन से खुलकर खिलवाड़ कर रहा है—
आज हम जिसे प्योरिटी कहते हैं बो कहां है सब्जियों में या दूध,अनाज में, जिस दूध को हम आंखों के सामने भैंस से निकलवा कर लाते हैं उस भैंस को ज्यादा दूध बनाने के लिए दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है जो सब्जियां हमे चिकनी और देखने में बहुत सुंदर लगती है वह रात और दिन की दवाओं द्वारा की उपज होती है जो अनाज किसान जमीन में पैदा करता है उस अनाज की ज्यादा उत्पत्ति के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है आज कौन सी ऐसी चीज है इंसान के खाद्य पदार्थों में जो दवाओं रहित पैदा हो रही है आज बढ़ती मंहगाई इंसान की कमर तोड़ रही है तब जीने के लिए बीमारियां और जहर खरीद कर ला रहा है इंसान,आज के बदलते परिवेश में हर इंसान आर्थिक सोच में प्रवेश कर चुका अगर हम इसपर सर्च करें तो किसान आज हमारा सबसे ज्यादा—क्या पब्लिक क्या उसका अपना परिवार अगर समय पर सरकारों ने इस जहर की उत्पत्ति पर काबू नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब इंसान इस प्रोग्रेस का निवाला बनकर रह जाएगा आजके नए-नए रोगों की इतनी ज्यादा उत्पत्ति हो रही है जो डॉक्टरों की डिग्रियों से भी बाहर है विषय चिंतनीय है इस पर समय से विचार करना जरूरी है आज आदमी-आदमी की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा है आर्थिक सोच में पड़ कर फिर चाहे इसमें अपना उसका परिवार हो या पब्लिक कभी हम इसे धरती का पुत्र किसान कहने में गौरव का एहसास महसूस करते थे—- क्योंकि जब दाता ही स्वार्थ में डूब जाए तो इंसान कराहेगा तो जरूर।
लेखिका, पत्रकार, दीप्ति चौहान।✍️