श्री राम की बाल लीलाओं का सुंदर चित्रण किया गया

सिंदरी (घनबाद):-7अप्रैल ।श्री राम कथा आयोजक समिति के द्वारा श्री राम कथा के आयोजन में आज पांचवे दिन की कथा में भोपाल से आए डॉ अमृता करूणेश्वरी जीनजी द्वारा श्री राम प्रभु लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न चारों राजकुमारों का नामकरण की लीला और बाल लीलाओं का सुंदर चित्रण किया गया भगवान के प्रकट होने पर अवध में इतना आनंद हो गया था कि दिन के समय भी शायंकाल जैसा वातावरण सुशोभित हो रहा था नगर वासियों ने अगर धूप और हवन इत्यादि इतना किया कि दिन में ही शायंकाल जैसा अंधेरा छा गया महाराज दशरथ के जो महल मैं जो रत्न और मनिया लगी थी थी वह मानो तारे के समान दिखाई दे रही थी और उनके यहां लगा हुआ महल पर लगा हुआ कलश मानव चंद्रमा के समान दिखाई दे रहा था जिसके कारण गोस्वामी जी वर्णन करते हैं कि 1 दिन महीने भर का हो गया क्योंकि सूर्यदेव भी भगवान के दर्शन करने में इतनी मोहित हो गए कि अपने रथ को आगे बढ़ाना ही भूल गए। इसी के साथ देवी जी ने बताया कि भगवान के दर्शन के लिए महादेव भोलेनाथ अयोध्या में काकभुशुंडि जी के साथ ज्योतिष का वेश बनाकर आएथे साथ ही देवी जी ने यह बताया कि हम मानव को अपने दिन प्रातः काल के शुरुआत कैसे करना चाहिए जैसे भगवान करते थे जिसमें गोस्वामी जी ने लिखा है “”प्रात काल उठ के रघुनाथा मात पिता गुरु नावही माथा। आयुष मांगी करनपुर काजा देखी चरित हरष मन राजा”कि भगवान भी प्रातः काल चक्कर सबसे पहले माता पिता और गुरुदेव को प्रणाम करते थे इसके बाद ही अपने दिन की शुरुआत करते थे तो हम सभी को भी ऐसा ही करना चाहिए अपने माता पिता और गुरु के आशीर्वाद से ही परमात्मा के आशीर्वाद से ही दिन का आरंभ करना चाहिए। भगवान गुरुकुल गए अध्ययन करके वापस आए और विश्वामित्र जीने महाराज दशरथ से श्री राम और लक्ष्मण को अपने साथ ही ले जाने के लिए मांगा ताकि ताड़का सुबाहु हो का वध करके भगवान ऋषि का यज्ञ सफलता से पूर्ण करा सकें यहीं पर अहिल्या उद्धार की कथा कही गई कि किस प्रकार भगवान की चरण रज से पाषाण बनी देवी अहिल्या मुक्ति को पाकर अपने पति लोग अपने पति के पास चले गए इसके साथ ही देवी जी ने धनुष भंग की कथा कहीं धनुष भंग करने के पूर्व श्री राम प्रभु ने गुरु को प्रणाम किया परमात्मा होते हुए भी उन्होंने हम सभी को नम्रता और विनम्रता की स्थिति बड़े-बड़े राजा आए लेकिन अहंकार से धनुष को हटाना चाहा और वह धनुष हिला भी नहीं परंतु भगवान श्री राम प्रभु ने देखते ही देखते उस धनुष के दूध बड़े करती है क्योंकि उनमें विनम्रता दी तो हमें उनसे विनम्रता सीखना चाहिए श्री राम जी का वरण माता सीता ने किया वह कथा गाई गई श्रद्धालु जन को झूमे और परशुराम संवाद कहा गया इसके बाद चारों महिया के विवाह का वर्णन किया गया

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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