गमला चोरी का मतलब

गमला चोरी का मतलब

वैसे तो चोरी बहुत घृणित अपराध है, लेकिन जब कोई अमीर या पैसे वाला छोटी चोरी करते देखा जाता है, तो चर्चा ऐसे होती है, मानो इंसान ने श्वान को काट लिया हो। वैसे समाज में चोरी बहुत सामान्य बात है, जगह-जगह सरकार स्वयं लिखती है कि अपने सामान की स्वयं रक्षा करें। लोग तो अपने सामान की रक्षा के लिए हर पल सजग रहते हैं, लेकिन सरकार सार्वजनिक सामान के लिए कहां-कहां सतर्कता बरत सकती है? नतीजा सामने है, जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले गुरुग्राम के सौंदर्यीकरण के लिए रखे गए गमलों की चोरी शर्मनाक ही नहीं, बल्कि दुखद भी है। गुरुग्राम में इतना बड़ा आयोजन हो रहा है, सबको पता है, विदेश से एक से बढ़कर एक प्रतिनिधि आएंगे, तो अतिरिक्त सजावट स्वाभाविक है, लेकिन अगर कोई पैसे वाला सजावटी गमलों को चुन-चुनकर उठा ले जाए, तो इससे निंदनीय और क्या हो सकता है? भला हो कि किसी ने इस कृत्य का वीडियो बना लिया, जिसमें बहुत आराम से दो शख्स फूल वाले गमले चुनकर तीस-चालीस लाख के वाहन में रखते दिख रहे हैं। गमले उठाने वालों ने जरा भी नहीं सोचा, उनकी मुद्रा में कोई संकोच या भय नहीं था, उन्हें शायद लग ही नहीं रहा था कि वे कुछ गलत कर रहे हैं।

क्या ऐसी चोरी को नजरंदाज कर दिया जाए? क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि जो जरूरतमंद है, उसे भी चोरी करने का हक दिया जाए और जो सक्षम है, उसे भी सार्वजनिक वस्तुओं में से अपनी पसंद का चुन लेने दिया जाए? शायद ऐसी चोरियां बढ़ी ही इसलिए हैं, क्योंकि लंबे समय तक उन्हें नजरंदाज किया गया है। क्या छोटे-बड़े चोरों की ऐसी जमात देश में मजबूत हो गई है, जो सरकारी सामान या धन को निजी मानकर चलती है? ऐसे चोरों के नाम पर मत जाइए, उनकी बुनियादी मानसिकता को समझने की कोशिश कीजिए। अमीर गमला चोर को पुलिस ने पकड़ लिया है और कानून अपना काम करेगा, पर यह मनोवैज्ञानिक रूप से भी अध्ययन का विषय है कि ऐसे लोग आखिर कैसे और क्या सोचते हैं? रोटी के लिए बहुत मजबूरी में चोरी करते गरीबों के प्रति कुछ सहानुभूति हो सकती है, हालांकि, कानून में ऐसी किसी सहानुभूति के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। अगर हमारा संविधान गरीबों को भी कोई सामान उठा ले जाने की इजाजत नहीं देता है, तो जो अमीर सार्वजनिक सामान उठा ले जाते हैं, उन्हें तो कतई नहीं छोड़ा जाना चाहिए।

अभी पिछले दिनों आगरा में भी जी-20 के आयोजन के लिए लगाए गए गमले चोरी हुए थे, तो पुलिस का पहरा बिठाना पड़ा था। वास्तव में, सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की खराब आदत पर स्कूल स्तर से ही काम करना होगा। हालांकि, शिक्षकों को भी कई बार स्कूल की संपत्ति का व्यक्तिगत दोहन करते पाया जाता है, ऐसे शिक्षक भला बच्चों को कैसी शिक्षा दे सकते हैं? न जाने कितने स्कूल होंगे, जहां बच्चे अपने शिक्षकों को सुस्वाद व पौष्टिक दोपहर भोजन का आनंद लेते देखते होंगे और शायद ऐसे ही बच्चे बड़े होकर सड़क पर लगे गमलों में से अपने घर के लिए पूरे हक से गमले चुनते होंगे? गुरुग्राम में गमलों की सुरक्षा के लिए 100 सुरक्षा गार्ड लगा देना ही पर्याप्त नहीं है। अब समय आ गया है कि सोच को सुनियोजित ढंग से बदला जाए। निजी व सार्वजनिक संपत्ति, दोनों की चोरी को एक जैसा समझा जाए। सरकार यह न बताए कि अपने सामान की रक्षा स्वयं करें, सरकार यह कहे कि आइए, मिलकर शून्य चोरी सुनिश्चित करें।

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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