बीमारी पहले दिमाग में पैदा होती है

जब तक हम किसी चीज को पकड़े रहते हैं, उससे जुड़े भाव भी हमारे भीतर बने रहते हैं। अगर किसी बात को छोड़ेंगे नहीं, खुद को क्षमा नहीं करेंगे या दूसरों को माफ नहीं करेंगे तो उस स्थिति से आगे कैसे बढ़ पाएंगे? कहीं तो बात को आखिरी मोड़ देना ही होगा।
माफ करिए, मजबूत बनिए, रिपोर्ट योगेश मुदगल

मन को स्वस्थ रखने की कुंजी है—नकारात्मक विचारों और भावनाओं को जाने देना। हमें यह सीखना पड़ता है। संतुष्टि, हमें अपने विचारों और भावनाओं को समझने में और क्षमा उन्हें जाने देने में मदद करती है।

पढ़ने में यह काम जितना साधारण लगता है, असल में यह उतना ही कठिन है। मन की संतुष्टि, वर्तमान क्षण में अपने विचारों के प्रति जागरूक होना है। हालांकि, यह काम उतना मुश्किल नहीं है। पर, इसमें पेच हमारी आधुनिक जीवन शैली के बीच इसको अमल में लाना है। और, माफ करना इससे कहीं ज्यादा मुश्किल है। हमारा दिमाग, हमारे अतीत की घटनाओं को, उससे जुड़े दर्द और कोफ्त पैदा करने वाली भावनाओं और यादों को पकड़े रहना चाहता है। लेकिन, हमें याद रखना चाहिए कि आधुनिक जीवन में इस तरह के भावनात्मक सुरक्षा तंत्र की जरूरत नहीं है। ये हमें राहत कम और कष्ट ज्यादा देता है

सबसे बुरा यह है कि हम अपनी या दूसरों की वजहों से क्रोधित होते हैं। क्रोध हमारी दिमागी स्थिति को काफी नुकसान पहुंचाता है, यही नहीं शरीर पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। मानसिक संतुष्टि और क्षमा के समझ भरे संयुक्त प्रयास से भावनात्मक और शारीरिक घावों को भरने में मदद मिलती है, जिससे जीवन आनंदमय और स्वस्थ होता है।

कुछ साल पहले मुझे लगता था, मेरा जीवन सफल हो चुका है। मैंने सब कुछ सही तरीके से किया है, मैं अपने लक्ष्य पाने में सफल रहा हूं, इसलिए मुझे खुश रहना चाहिए। मुश्किल पढ़ाई करते हुए कई साल बिताने के बाद मुझे एक कॉरपोरेट बैंक में नौकरी मिली। मेरे सपने सच हुए। मैं महंगी कार खरीद पाया। मैं पार्टी करता, घूमता और मौज-मस्ती करता था। जीवन काफी बेहतर चल रहा था। पर, मस्ती तो थी, जीवन स्वस्थ नहीं था। सेहत गिरती जा रही थी। वजन भी काफी बढ़ गया, मैं हमेशा थका-थका महसूस करने लगा था।

मैं कुछ भी करता, पर खुश नहीं रह पाता था। चिढ़ और बेचैनी मुझ पर लगातार हावी रहते। मैं जीवन में खुशी क्यों महसूस नहीं कर पा रहा था, यह मुझे समझ नहीं आ रहा था। मैंने खुश रहने की हर जुगत करके देख ली, पर खुशी नहीं मिली। मेरी हालत बढ़ते वजन वाले 35 वर्षीय युवा की थी, जिसकी मानसिक और शारीरिक हालत बिगड़ी हुई थी। अस्पताल गया तो दिल की हालत तो अब तक ठीक थी, पर शरीर साथ नहीं दे रहा था। उस समय, अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेट मुझे मेरे कुछ सवालों के जवाब मिले।

बीमारी पहले दिमाग में पैदा होती है

मेरी समस्या मानसिक थी। मैं अपने भीतर नकारात्मक सोच जमा करता जा रहा था और अपनी भावनाओं को संभाल नहीं पा रहा था, जिसके चलते शरीर भी नकारात्मक तरीके से व्यवहार करने लगा था। मैं अपने मन को संतुष्ट नहीं कर पा रहा था। नकारात्मक भावनाओं को छोड़ नहीं पा रहा था।

आखिर में, एक दिन मैंने अपनी नकारात्मक भावनाओं और विचारों का मुकाबला करने की ठानी। यह प्रक्रिया आसान थी ठहरो और गहरी सांस लो। स्थिर हो जाओ, सांसों पर ध्यान केंद्रित करो और धीरे-धीरे सांस छोड़ो। फिर देखो आप कैसा महसूस करते हैं? यह भावनाएं कैसी हैं? मैं उन्हें क्यों महसूस कर रहा हूं? वह मुझे क्या बताना चाह रही हैं?

मैंने महसूस किया कि इन सबसे ताकतवर क्रोध की भावना थी। मैं खुद पर क्रोधित था। यह हालत इतनी खराब कैसे हुई? मैं अपने माता-पिता, शिक्षकों से गुस्सा था। उन्होंने मुझे भावनाओं पर काबू करने का तरीका नहीं सिखाया। रोना कमजोरी की निशानी है, गुस्सा आए तो कमरा बंद करके तब तक पड़े रहो जब तक गुस्सा चला ना जाए, ज्यादा प्यार या स्नेह दर्शाना अच्छा नहीं होता। इस तरह की नसीहतों से मैंने अपनी भावनाओं को दबाना सीखा था। मैं समाज से गुस्सा था। मेरे पास शिक्षा, करियर, पैसा, कार और बाकी काफी कुछ था फिर भी आनंद नहीं था। मैंने जो अपने आसपास से सीखा था, मैं उसी का पालन कर रहा था। और उन लोगों ने भी यही सीखा था। उनका भी क्या कसूर, क्योंकि उनके पास देने के लिए यही था।

फिर मैंने माफ करना शुरू किया। मन की संतुष्टि के लिए मैंने ध्यान लगाना शुरू किया। इससे मुझे काफी राहत मिली। मेरे क्रोध पर लगाम लगने लगी। मैंने अपनी यादों का इलाज करना शुरू कर दिया और उनसे जुड़े लोगों को माफ करना शुरू कर दिया। सच में, इससे मुझे फौरन राहत मिलने लगी।

मेरे मन और शरीर के दर्द का उपचार होने लगा। मेरी अरिथीमिया की बीमारी का कोई लक्षण नहीं रहा। मुझे यकीन नहीं हो रहा था। दो दिन में ही मेरी समस्या का हल होने लगा। जो रोग मैंने दस सालों में जमा किया था, दो दिन में उसकी छुट्टी हो गई। मेरी दिमागी हालत में भी काफी सुधार आया। मैं खुश और प्रसन्न रहने लगा। हर क्षण में मुझे आनंद की अनुभूति होने लगी। मुझे अहसास हो गया कि खुशी तो हर वक्त मौजूद थी, मैं ही उसे भूत और भविष्य के चक्कर में पहचान नहीं पा रहा था।

क्षमा करने के चार स्तर

● आपने जो अपने साथ किया, उसके लिए खुद को क्षमा करना।

● जो आपने दूसरों के साथ किया, उसके लिए खुद को क्षमा करना। हो सके तो उनसे माफी मांगना।

● दूसरों ने जो आपके साथ किया उसके लिए उन्हें क्षमा करना।

● बिना माफी की अपेक्षा रखे, दूसरों को उनके कामों के लिए क्षमा करना।

पहले स्तर से शुरू करें। कुछ ही दिनों में आप राहत महसूस करने लगेंगे।

हर कोई बेहतर करना चाहता है

इस समय आपके पास कोई बेहतर विकल्प नहीं है, इसके लिए खुद को क्षमा करें। औरों के पास कोई और तरीका नहीं है, इसके लिए उन्हें क्षमा करें। जो आपने सीखा आपने उसी तरीके से व्यवहार किया, बाकी लोग भी यही कर रहे हैं। मन में क्रोध, भय, घृणा भरने से आप खुद को नुकसान पहुंचाएंगे। क्षमा करने से आपको शांति मिलेगी। बीती बातें भूलने और आने वाले कल की चिंता न करने से आपका जीवन शांति और आनंद के साथ व्यतीत होगा।

About The Author

निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

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