हेल्थ अफसर डा प्रदीप कुमार के निधन से
स्वास्थ हलकों में मातम पसरा नम आंखों से
अंतिम दर्शन को लोग उमड़े

एक हालिया शब्द संवेदना-

“तुम जैसे चले गए हो वैसे जाता
नही है कोई”

हेल्थ अफसर डा प्रदीप कुमार के निधन से
स्वास्थ हलकों में मातम पसरा नम आंखों से
अंतिम दर्शन को लोग उमड़े

एटा। जिले के मशहूर हेल्थ अफसर एटा जिला एवम महिला अस्पताल में सीएमएस पदो पर लम्बे समय तक रहे डाक्टर प्रदीप कुमार का आज सबेरे लगभग 8-30 पर हार्ट अटैक आने से निधन हो गया। दबे पांव आई मौत की आहट को कोई नहीं भांप सका किसे पता था सुबह तक फोन पर सबसे बात करने बाला यह शख्स नही रहेगा। बताते एटा के हीरा नगर आवास पर डाक्टर प्रदीप अपने सहायक के साथ थे सुबह की पहली चाय भी पी ली थी जब टॉयलेट के लिए गए तो लौट कर असहज महसूस हुआ जिस पर उनके सहायक ने सहारा दिया अपने बेटे डाक्टर कोस्तुभ सिंह के हिदायत पर उन्हें एटा के मेस्ट्रो हॉस्पिटल में ले जाया गया परंतु वहां जाने से पहले उनकी मृत्यु हो गई। बताते हैं उनकी पत्नी डाक्टर सुधा सिंह और बेटा उस समय आगरा में थे खबर सुन कर तुरंत एटा आ गए पर किसे पता था कि जिस पिता से जिस पति से सुबह फोन पर बात हुई वह चंद घंटे बाद जीवित नही मिलेंगे। उक्त डाक्टर परिवार के ऊपर बड़े दुख का पहाड़ टूट पड़ा तो स्वास्थ महकमे के लिए डाक्टर प्रदीप की मौत की खबर कम सदमे की नही थी डाक्टर,नर्सिंग फार्मेसी एटा कासगंज अलीगढ़ के अनेकों अफसर अपने साथी के दुखद निधन पर एटा पहुंचने लगे। बताया गया डाक्टर प्रदीप के परिवार में एक भाई आसाम में हैं उनके आने के बाद अंतिम संस्कार एटा के वनगांव स्थित शमशान स्थल पर किया गया।
डाक्टर प्रदीप कुमार पिछले 3 दशक से एटा कासगंज अलीगढ़ जिलों में तैनात रहे सफल प्रशासनिक अधिकारी रहे। हरफनमौला तबियत के प्रदीप से उनके अधीनस्थ खुश रहते थे। दबंग एवम व्यवहार कुशल पर्सनेलिटी के कारण दोस्ताना संबंधों के लोग कायल रहते थे। आज उनकी मौत की खबर सुन कर एटा कासगंज के स्वास्थ कर्मियों ने अपने गार्जियन को खोने जैसा मलाल दिखा। रोती बिलखती आंखों से अंतिम दर्शन के मंजर तो यही बताते थे। डा प्रदीप से हमारा रिश्ता उनके बड़े भाई जैसा था वह कहीं भी रहे हों हमसे संवाद और निजी सरकारी बातें होती रहती थी। आकस्मिक निधन की खबर व्यक्तिगत रूप से मुझे विचलित करने बाली थी। अंतिम दर्शन कर यद्यपि एक औपचारिकता निभाई हैं परंतु उनके जीवन के अविस्मरणीय पल रह रह कर याद आ रहे हैं जिनके हम खुद साक्षी रहे हैं।
यद्यपि मौत एक अटल सत्य जिसे कोई नही झुंठला पाया हैं। पर अचानक बिना किसी पद चाप के यह किसी का हरण करती हैं वो किसी अपने को तो दिल अंदर से दहल दहल कर द्रवित होता हैं। कुछ ऐसी मनःस्थिति में मुझे कैफ़ी आज़मी साहब की लाइनें याद आ रही हैं जिनके माध्यम से मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं:–
रहने को तो दहर में आता
नही हैं कोई।
तुम जैसे चले गए वैसे जाता
नही है कोई।
हर सुबह हिला देता था जंजीर जमाना,,
क्यूं आज दीवाने को जगाता
नही कोई।
-राजू उपाध्याय ‘जर्नलिस्ट’
मीडिया चैंबर
एटा कार्यालय

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निशाकांत शर्मा (सहसंपादक)

यह खबर /लेख मेरे ( निशाकांत शर्मा ) द्वारा प्रकाशित किया गया है इस खबर के सम्बंधित किसी भी वाद - विवाद के लिए में खुद जिम्मेदार होंगा

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